भारोत्तोलन स्वर्ण पदक विजेता शेयुली की मां ने कहा, उसकी ट्राफियां अधफटी साड़ी में लपेटकर रखे हैं
कोलकाता. हाल में राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले भारोत्तोलक अंचिता शेयुली की मां ने उनकी ट्राफियां और पदकों को अपनी अधफटी साड़ी में लपटेकर दो कमरों के घर में माौजूद एकमात्र बेड के नीचे रखा हुआ है. शेयुली का घर यहां से 20 किमी दूर हावड़ा जिले देयुलपुर में हैं.
जब यह भारोत्तोलक र्बिमंघम में समाप्त हुए राष्ट्रमंडल खेलों से 73 किग्रा वजन वर्ग का स्वर्ण पदक लेकर सोमवार सुबह को घर लौटा तो उनकी मां पूर्णिमा शेयुली ने एक छोटे से स्टूल पर इन ट्राफियों और पदकों को रखा हुआ था. उनकी मां ने अपने छोटे बेटे से अंिचता के अब तक जीते गये पदक और ट्राफियों को रखने के लिये एक अलमारी खरीदने के लिये कहा है.
पूर्णिमा शेयुली ने पीटीआई से कहा, ‘‘मैं जानती थी कि जब अंिचता आयेगा तो पत्रकार और फोटोग्राफर हमारे घर आ रहे होंगे. इसलिये मैंने ये पदक और ट्राफियां एक स्टूल पर सजा दीं ताकि वे समझ सकें कि मेरा बेटा कितना प्रतिभाशाली है. मैंने सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि वह देश के लिये स्वर्ण पदक जीतेगा. ’’ उन्होंने अपने पति जगत शेयुली के 2013 में निधन के बाद अपने बेटों -आलोक और अंिचता- का पालन पोषण करने के लिये कितनी ही मुश्किलों का सामना किया है.
उन्होंने कहा, ‘‘आज, मेरा मानना कि भगवान ने हम पर अपनी कृपा करना शुरू कर दिया है. हमारे घर के बाहर जितने लोग इकट्ठा हुए हैं, उससे दिखता है कि समय बदल गया है. किसी को भी अहसास नहीं होगा कि मेरे लिये दोनों बेटों को पालना कितना मुश्किल था. ’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैंने उन्हें रोज खाना भी मुहैया नहीं करा पाती थी. ऐसे भी दिन थे जिसमें वे बिना खाये सो गये थे. नहीं पता कि मैं खुद को बयां कैसे करूं और क्या कहूं. ’’ अंिचता का भाई भी भारोत्तोलक है. उनकी मां ने कहा कि उनके बेटों को साड़ियों पर जरी का काम करने के अलावा सामान चढ़ाना और उतारने का का भी करना पड़ता था.
दोनों भाईयों ने इतनी मुश्किलों के बावजूद भारोत्तोलन जारी रखा. उनकी मां ने कहा, ‘‘मेरे पास अपने बेटों को काम पर भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. वर्ना हमारे लिये जीवित रहना ही मुश्किल हो गया होता. ’’’ बीस साल के भारोत्तोलक अंिचता ने अपनी उपलब्धि के लिये मां और कोच अस्तम दास को श्रेय दिया था.
उन्होंने नयी दिल्ली से पीटीआई से कहा, ‘‘अच्छा काम करके घर लौटना अच्छा महसूस हो रहा है. मैंने जो भी हासिल किया है, वो मेरी मां और मेरे कोच अस्तम दास की वजह से ही है. दोनों ने मेरी ंिजदगी में अहम भूमिका निभायी है और मैं आज जो कुछ भी हूं, इन दोनों की वजह से ही हूं. ’’ यह भारोत्तोलक दिल्ली में एक बैठक में हिस्सा लेने के लिये बुधवार को तड़के ही रवाना हो गया.
उन्होंने कहा, ‘‘ंिजदगी मेरे और मेरे परिवार के लिये कभी भी आसान नहीं रही. पिता के निधन के बाद हमें ‘एक जून की रोटी’ के लिये कमाई करनी पड़ी. अब हम दोनों भाईयों ने कमाना शुरू किया है लेकिन हमारी आर्थिक समस्या को सुलझाने के लिये इतना ही काफी नहीं है. अगर सरकार हमारी समस्या देखे और हमारी मदद करे तभी इसमें सुधार हो सकता है. ’’ उनके कोच अस्मत दास से जब संपर्क किया गया तो उन्होंने पूरा श्रेय अंिचता को दिया. उन्होंने कहा, ‘‘वह मेरे बेटे जैसा है. वह अन्य से अलग है. मैंने उसे आसानी से हार मानते हुए नहीं देखा जिससे उसे इतनी मुश्किलों के बावजूद अपना लक्ष्य हासिल करने में मदद मिली.’’