जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों से संबंधों के आरोप में चिकित्सक, पुलिसकर्मी सहित चार कर्मचारी बर्खास्त
जम्मू. जम्मू एवं कश्मीर प्रशासन ने केंद्र शासित प्रदेश में आतंकवादियों के साथ कथित संबंधों के आरोप में एक चिकित्सक और एक पुलिसकर्मी सहित चार सरकारी कर्मचारियों को बुधवार को बर्खास्त कर दिया. अधिकारियों ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि श्रीनगर के एसएमएचएस अस्पताल में सहायक प्रोफेसर (चिकित्सा) निसार-उल-हसन, कांस्टेबल अब्दुल मजीद भट, उच्च शिक्षा विभाग में प्रयोगशाला कर्मी अब्दुल सलाम राठेर और शिक्षा विभाग में शिक्षक फारुख अहमद मीर को भारत के संविधान के अनुच्छेद 11 के प्रावधानों के तहत बर्खास्त कर दिया गया.
अधिकारियों ने बताया कि पिछले तीन वर्षों में केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन ने संविधान की धारा 311 (2) (सी) का इस्तेमाल करते हुए 50 से अधिक कर्मचारियों को बर्खास्त किया है. ये लोग कथित तौर पर पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों की मदद कर रहे थे, आतंकवादियों की विचारधारा का प्रचार कर रहे थे, धन जुटा रहे थे और अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे थे.
सामान्य प्रशासन विभाग ने अलग लेकिन समान बर्खास्तगी के आदेश में कहा कि उप राज्यपाल तथ्यों पर विचार के बाद की गई कार्रवाई से संतुष्ट हैं. आदेश में कहा गया कि उपलब्ध जानकारी के अनुसार चारों कर्मचारियों की गतिविधियां ऐसी हैं कि उन्हें सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है. संविधान के अनुच्छेद 311 के खंड (2) के प्रावधान के उप-खंड (सी) के तहत उपराज्यपाल संतुष्ट हैं कि राज्य की सुरक्षा के हित में मामले में जांच कराना आवश्यक नहीं है.
अधिकारियों ने कहा कि ये बर्खास्तगी आतंकवादी पारिस्थितिकि तंत्र और उनके अहम साझेदारों पर चल रही कड़ाई का हिस्सा है, जिन्हें अतीत में अलग-अलग शासनों ने गुप्त रूप से सरकारी तंत्र में शामिल किया था. अधिकारियों ने कहा कि हसन उत्तरी कश्मीर के बारामुला जिले के सोपोर स्थित ‘डॉक्टर्स एसोसिएशन कश्मीर’ (डीएके) का स्वयंभू अध्यक्ष है, वह ‘अलगाववाद’ फैला रहा था और उसे ‘सीमा पर से स्पष्ट निर्देश’ थे…..
उन्होंने कहा कि हसन ने एक कट्टर अलगाववादी के तौर पर छवि बनाई और वह लगातार अलगाववादियों और आतंकवादियों को नैतिक समर्थन प्रदान कर रहा था. अधिकारियों ने कहा कि वह एक ‘संभावित टाइम-बम’ है जिसका भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ व्यापक हिंसा और अशांति पैदा करने के लिए पाकिस्तान और उसके आतंकवादी-अलगाववादी नेटवर्क किसी भी समय फिर से इस्तेमाल कर सकते हैं.
राठेर दक्षिण कश्मीर के कुलगाम का निवासी है और उसका आतंकवादियों के साथ संबंधों का एक लंबा इतिहास है. उसने अपनी गोद ली हुई बेटी का विवाह पाकिस्तान के पंजाब के कसूर इलाके में लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) कमांडर हबीबुल्लाह मलिक उर्फ सज्जाद जट से की थी. अधिकारियों ने कहा कि 2005 में पाकिस्तान भागने से पहले मलिक कई वर्षों तक घाटी में सक्रिय रहा.
उन्होंने बताया कि राठेर का असली काम आतंकवादी संगठनों हिज्बुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा के लिए युवाओं को भर्ती करना और समर्थकों तथा मददगारों का नेटवर्क बनाना था. अधिकारी ने बताया कि उसे पहली बार 1990 में दैनिक वेतन भोगी के रूप में सरकारी प्रणाली में शामिल किया गया था और बाद में 1998 में नियमित कर दिया गया था.
अधिकारियों ने कहा कि 1998 से 2005 के बीच मलिक के आदेश पर पुलिस और सुरक्षा बलों पर कई हमलों के अलावा लश्कर के आतंकवादियों ने मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के दर्जनों कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी थी. उन्होंने कहा कि जांच से यह भी पता चला है कि राठेर ने मलिक को अपने घर में शरण दी थी, लेकिन जब शिकंजा कसा तो राठेर ने मलिक को पाकिस्तान भागने में मदद की.
उन्होंने कहा कि मलिक भोले-भाले युवाओं को आतंकी संगठनों में भर्ती करने के लिए तैयार करने और लालच देने के अलावा पाकिस्तान से ड्रोन और अन्य माध्यमों से धन, हथियार और तस्करी का सामान भेजता रहा है. अधिकारियों ने कहा कि कांस्टेबल भट को पिछले वर्ष 1.8 किलोग्राम हेरोइन बरामद होने के बाद गिरफ्तार किया गया था और वर्तमान में वह मादक पदार्थ-आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में न्यायिक हिरासत में है.
अधिकारियों ने कहा कि कुपवाड़ा जिले के कुनान इलाके के निवासी भट को 2011 में एक विशेष पुलिस अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था और पांच साल बाद कांस्टेबल बनाया गया था जबकि उसने केवल कक्षा नौ तक पढ़ाई की थी. अधिकारियों ने बताया कि कुपवाड़ा निवासी मीर भी पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादी है. उसे 1994 में शिक्षा विभाग में नियुक्त किया गया था और बाद में 2007 में शिक्षक के रूप में पदोन्नत किया गया था.
उन्होंने बताया कि जांच से पता चला है कि मीर अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता सैयद अली शाह गिलानी द्वारा गठित तहरीक-ए-हुरियत में शीर्ष कार्यकर्ता था. अधिकारियों ने कहा कि जनसुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिए जाने और कई बार गिरफ्तार किए जाने के बावजूद विभाग ने उसके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की और छह महीने तक जेल में रहने के बावजूद उसे कभी भी अनुपस्थित नहीं माना गया.