RBI ने समय रहते सही कदम उठाए, मुद्रास्फीति लक्ष्य पर ध्यान देना विनाशकारी होता: दास

मुंबई. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को कहा कि केंद्रीय बैंक अगर चार फीसदी के मुद्रास्फीति लक्ष्य पर ध्यान देने में लग जाता तो इसके परिणाम वैश्विक महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी हो सकते थे. उन्होंने आरबीआई पर बदलती परिस्थितियों के मद्देनजर सही समय पर नीतिगत कदम नहीं उठा पाने के आरोपों को खारिज करते हुए यह बात कही. दो दिन पहले एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें आरबीआई पर आरोप लगाया गया था कि उसने मुद्रास्फीति पर समय रहते कदम नहीं उठाए. पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरंिवद सुब्रमण्यम इस लेख के सह-लेखक थे.

उल्लेखनीय है कि आरबीआई को दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ खुदरा मुद्रास्फीति चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है.
अखबार फाइनेंशियल एक्सप्रेस के एक कार्यक्रम में दास ने कहा, ‘‘वैश्विक महामारी के दौरान उच्च मुद्रास्फीति को बर्दाश्त करना आवश्यक था, हम अपने फैसले पर कायम हैं.’’ उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक आर्थिक विकास की जरूरतों को देखते हुए कदम उठा रहा था.
दास ने कहा कि देश में लॉकडाउन लगने के बाद आरबीआई ने बेहद नरम रूख अपनाया और इसके दो साल बाद, अप्रैल 2022 में मुद्रास्फीति पर ध्यान दिया जब जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर महामारी से पहले के स्तर से भी आगे बढ़ गई.

उन्होंने कहा कि आरबीआई के नियमों में यह स्पष्ट कहा गया है कि मुद्रास्फीति का प्रबंधन वृद्धि संबंधी हालात को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए. दास ने कहा कि वैश्विक महामारी के मद्देनजर आरबीआई ने वृद्धि की ओर ध्यान दिया और सुगम नकदी परिस्थितियां बनने दीं. इसके बावजूद 2022-21 में अर्थव्यवस्था 6.6 फीसदी संकुचित हो गई थी. उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक ने यदि अपना रुख पहले बदल लिया होता तो 2021-22 में वृद्धि पर इसका असर पड़ सकता था.

आरबीआई गवर्नर ने साफ किया कि मुद्रास्फीति से निपटने के लिए आरबीआई इससे (अप्रैल 2022 से) तीन या चार महीने पहले तक भी ध्यान नहीं दे सकता था, यह उचित नहीं होता. उन्होंने कहा कि मार्च में जब आरबीआई को ऐसा लगा कि आर्थिक गतिविधियां वैश्विक महामारी से पहले के स्तर से आगे निकल गई हैं तब उसने मुद्रास्फीति को काबू करने की दिशा में काम करने का निर्णय लिया. उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक दरों में तत्काल बड़ी वृद्धि नहीं कर सकता था.

उन्होंने कहा कि फरवरी 2022 में अनुमान लगाया गया था कि 2022-23 में मुद्रास्फीति 4.5 फीसदी रह सकती है, वह कोई आशाजनक अनुमान नहीं था, यह गणना भी कच्चे तेल की कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल रहने के अनुमान को ध्यान में रखकर की गई थी लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले से परिदृश्य बदल गया.

सुब्रमण्यम के लेख में आरोप लगाया गया कि चार फीसदी मुद्रास्फीति का लक्ष्य अक्टूबर 2019 से ही हासिल नहीं हुआ और तब से 32 महीनों में से 18 महीनों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आरबीआई की छह फीसदी की ऊपरी सीमा से पार चला गया. इसमें मुद्रास्फीति अनुमान पर भी सवाल उठाए गए. दास ने कहा कि उन्होंने उक्त लेख पढ़ा नहीं है और वह इस बहस में नहीं पड़ना चाहते.

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