सीतारमण ने उद्योग जगत की तुलना हनुमान से की, पूछा-निवेश को लेकर झिझक क्यों

नयी दिल्ली. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को उद्योग जगत की तुलना भगवान हनुमान से की. उन्होंने पूछा कि आखिर वे विनिर्माण क्षेत्र में निवेश को लेकर क्यों झिझक रहे हैं और कौन सी चीजें रोक रही हैं. वित्त मंत्री ने कहा कि विदेशी निवेशक भारत को लेकर भरोसा जता रहे हैं जबकि ऐसा लगता है कि घरेलू निवेशकों में निवेश को लेकर कुछ झिझक है.

उन्होंने कहा कि सरकार उद्योग के साथ मिलकर काम करने को इच्छुक है और नीतिगत कदम उठाने को तैयार है. सीतारमण ने कहा, ‘‘यह समय भारत का है…हम अवसर को नहीं खो सकते.’’ उन्होंने कहा कि सरकार उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना लेकर आई, विनिर्माण क्षेत्र में निवेश के लिये कर दरों में कटौती की.

वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘कोई भी नीति अपने-आप में अंतिम नहीं हो सकती.. जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं यह विकसित होती रहती है. यह उन उद्योगों पर भी लागू होता है जो उभरते क्षेत्र से जुड़े हैं, जिनके लिए हमने प्रोत्साहन के माध्यम से नीतिगत समर्थन दिया है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं उद्योग जगत से जानना चाहूंगी कि आखिर वे निवेश को लेकर झिझक क्यों रहे हैं…हम उद्योग को यहां लाने और निवेश को लेकर सब कुछ करेंगे..लेकिन मैं भारतीय उद्योग से सुनना चाहती हूं कि आपको क्या रोक रहा है?’’

सीतारमण ने माइंडमाइन शिखर सम्मेलन में कहा कि दूसरे देश और वहां के उद्योगों को भारत को लेकर भरोसा है. यह एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) और एफपीआई (विदेशी पोर्टफोलियो निवेश) प्रवाह और शेयर बाजार में निवेशकों के विश्वास से पता चलता है.
वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘क्या यह हनुमान की तरह है? आप अपनी क्षमता पर, अपनी ताकत पर विश्वास नहीं करते हैं और आपके बगल में कोई खड़ा होता है और कहता है कि आप हनुमान हैं, इसको कीजिए? वह व्यक्ति कौन है जो हनुमान को बताने वाला है? यह निश्चित रूप से सरकार नहीं हो सकती.’’

बहुपक्षीय संस्थानों को प्रासंगिक बने रहने के लिए कदम उठाने होंगे: सीतारमण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को कहा कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) जैसे बहुपक्षीय संस्थानों को महामारी के बाद की दुनिया में प्रासंगिक बने रहने के लिये अब खुद को नए सिरे से व्यवस्थित करने की जरूरत है. सीतारमण ने बहुपक्षीय संस्थानों में सुधारों की जरूरत से संबंधित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि इन संस्थानों को 21वीं सदी के लिहाज से खुद को प्रासंगिक बनाए रखना होगा.

एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में शिरकत करते हुए वित्त मंत्री ने कहा, “कई ऐसी वैश्विक आपदाएं रही हैं जो वित्तीय क्षेत्र को सीधे तौर पर प्रभावित करती रही हैं. इन आपदाओं ने इस बहस को जरूरी बना दिया है और मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि बहुपक्षीय संस्थान प्रासंगिक बने रहने के लिए अपनी गतिविधियों को नए सिरे से व्यवस्थित करने की दिशा में गंभीरतापूर्वक विचार करें.” सीतारमण ने ‘रिकैलिब्रेट: चेंंिजग पैराडाइम’ शीर्षक वाली किताब के विमोचन कार्यक्रम में हिस्सा लिया. यह किताब वित्त आयोग के चेयरमैन एन के सिंह और प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव पी के मिश्रा ने लिखी है.

उन्होंने कहा, ‘‘इस किताब में राजकोषीय परिषद के गठन की सिफारिश की गयी है. राजकोषीय अनुशासन को और मजबूत करने के लिये राजकोषीय परिषद के गठन का मजबूत मामला बनता है.’’ इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सरकारों की तरफ से लोगों को मुफ्त उपहार देने के मामले में व्यापक चर्चा की जरूरत है. इस किताब में भी इस मुद्दे का उल्लेख किया गया है.

इस मौके पर किताब के लेखक और वित्त आयोग के प्रमुख सिंह ने कहा कि मुफ्त उपहारों के लिए बजट में पारदर्शी ढंग से प्रावधान किए जाने चाहिए. वहीं सह-लेखक और प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव मिश्रा ने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि पर खास तौर पर ध्यान देना आर्थिक वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है.

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