शिवसेना के नाम व चुनाव चिन्ह पर निर्वाचन आयोग फैसले के खिलाफ के उद्धव की याचिका खारिज

नयी दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने शिवसेना पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न के इस्तेमाल पर रोक लगाने के निर्वाचन आयोग के अंतरिम आदेश के खिलाफ दायर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की याचिका मंगलवार को खारिज कर दी. न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि यह शिवसेना के दोनों गुटों और आम लोगों के हित में होगा कि शिवसेना के धनुष और तीर के चुनाव चिन्ह और नाम के इस्तेमाल पर आयोग की कार्यवाही जल्द ही समाप्त हो. उच्च न्यायालय ने आयोग से इस मुद्दे पर जल्द से जल्द फैसला करने को कहा.

अदालत ने कहा, ‘‘ मौजूदा याचिका को खारिज किया जाता है.’’ अदालत ने यह भी कहा कि उच्चतम न्यायालय ने मौजूदा मामले में आयोग को कार्यवाही से नहीं रोका है. न्यायमूर्ति नरूला ने कहा कि फैसले के कारणों को विस्तृत आदेश में बताया जाएगा. इस साल के शुरु में महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ ंिशदे ने ठाकरे के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया था और उनपर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के साथ “अस्वाभाविक गठबंधन” करने का आरोप लगाया था. शिवसेना के 55 में से 40 से ज्यादा विधायक ंिशदे के साथ चले गए थे जिसके बाद ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

इसके बाद ंिशदे गुट ने पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह पर दावा करते हुए कहा कि वही असली शिवसेना है. आयोग ने आठ अक्टूबर को अपने अंतरिम आदेश में ठाकरे और ंिशदे की अगुवाई वाले शिवसेना के दोनों गुटों को मुंबई की अंधेरी सीट के उपचुनाव के दौरान पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह इस्तेमाल करने से रोक दिया था. ठाकरे ने पिछले महीने उच्च न्यायालय का रुख कर आयोग के इस आदेश को रद्द करने की गुजारिश की थी.

याचिका में आरोप लगाया गया है कि आयोग ने मौखिक सुनवाई के अनुरोध के ठाकरे के आवेदन के बावजूद सुनवाई का अवसर दिए बिना आदेश पारित करने में अनुचित जल्दबाजी दिखाई. ठाकरे ने अपनी याचिका में दावा किया है कि पार्टी का चुनाव चिन्ह उसकी पहचान है, जिसका इस्तेमाल शिवसेना की स्थापना के बाद से किया गया है. 1966 में उनके पिता बाल ठाकरे ने पार्टी की स्थापना की थी.

इसके जवाब में आयोग के वकील सिद्धांत कुमार ने अदालत से कहा कि आयोग ने मामले को उचित शीघ्रता से लिया और ऐसा करना जारी रखेगा. उन्होंने कहा कि आयोग ने 23 नवंबर तक सब कुछ पूरा करने के लिए कहा है. उन्होंने यह भी कहा कि निष्पक्षता का उल्लंघन नहीं किया गया है और अदालत के लिए यह उचित नहीं है कि वह मामले में दखल दे और भावी मामलों के लिए एक नजÞीर पेश करे.

कुमार ने कहा, ‘‘ हम यथासंभव शीघ्रता से आगे बढ़ेंगे और सुनवाई पूरी करेंगे. हर चुनाव चिन्ह के मामले में यही प्रयास होगा.’’ उन्होंने कहा कि आयोग दोनों पक्षों की आपत्तियों को सुनेगा और मामले का फैसला करेगा. वहीं याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि आयोग इस धारणा पर अंतरिम आदेश पारित नहीं कर सकता कि शिवसेना में दो गुट हैं, क्योंकि उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ इस मामले पर विचार करेगी कि उन विधायकों को तब से अयोग्य समझा जाए जब उन्होंने पार्टी छोड़ी थी. उन्होंने कहा कि आयोग यह मान नहीं सकता है कि ंिशदे शिवसेना का हिस्सा हैं.

ठाकरे की ओर से पेश अन्य वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने भी प्रक्रियात्मक निष्पक्षता की कमी का दावा किया और कहा कि ंिशदे के नेतृत्व वाले समूह के पक्ष में प्रथम दृष्टया मामला नहीं होने के बावजूद आयोग ने अंतरिम आदेश पारित किया था. उन्होंने यह भी कहा कि सभी विधान परिषद के सभी 12 सदस्य और राज्यसभा के सभी तीन सदस्य ठाकरे के साथ हैं. ंिशदे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल और राजीव नायर ने आयोग के आदेश का बचाव किया.

कौल ने दलील दी कि आयोग एक संवैधानिक प्राधिकरण और वह किसी विवाद को उस तरीके से तय कर सकता है जैसा वह उचित समझे और चुनाव चिन्ह व नाम के इस्तेमाल पर रोक का आदेश ‘‘एक अंतरिम व्यवस्था” है और इस मामले पर अभी फैसला होना बाकी है. उन्होंने कहा कि इस स्तर पर अदालत का हस्तक्षेप “न्याय का उपहास” होगा और एक मिसाल कायम करेगा जो “लोकतंत्र के लिए स्वस्थ नहीं” है. वहीं नायर ने कहा कि अधिकतर विधायक और लोकसभा सदस्य ंिशदे के साथ हैं.

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