कूनो पार्क में चीता के दो और शावकों की मौत

भोपाल/नयी दिल्ली. मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में भारत में जन्मे दो और चीता शावकों की मौत होने से देश में चीतों को पुन?: बसाने के महत्वकांक्षी ”प्रोजेक्ट चीता” को झटका लगा है. इससे बाद केएनपी में मरने वाले चीता शावकों की संख्या बढ.कर तीन हो गई. 23 मई को भी पार्क में एक शावक की मौत हुई थी. बताया जाता है कि दो शावकों की मौत भी उसी दिन मंगलवार दोपहर को हो गई थी, लेकिन उनकी मौत की सूचना बृहस्पतिवार को दी गयी.

इन दोनों शावकों की उसी दिन मौत होने की जानकारी नहीं देने के पीछे के कारण का खुलासा अधिकारी ने नहीं किया. एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, 23 मई को एक चीता शावक की मौत के बाद निगरानी टीम ने मादा चीता ज्वाला और उसके बाकी तीन शावकों की गतिविधियों पर नजर रखी. विज्ञप्ति में बताया कि निगरानी दल ने 23 मई को पाया कि तीनों शावकों की हालत ठीक नहीं है और उनका उपचार कर बचाने का निर्णय लिया गया. उस समय दिन का तापमान 46 से 47 डिग्री सेल्सियस के आसपास था.

विज्ञप्ति के मुताबिक, शावक गंभीर रूप से निर्जलित पाए गए और इलाज के बावजूद शावकों को नहीं बचाया जा सका. चौथे शावक की हालत स्थिर है और उसका गहन इलाज चल रहा है. ज्वाला ने सितंबर में नामीबिया से केएनपी आने के बाद मार्च के अंतिम सप्ताह में चार शावकों को जन्म दिया था. ज्वाला को पहले सियाया नाम से जाना जाता था.

नामीबियाई चीतों में से एक साशा की 27 मार्च को गुर्दे की बीमारी के कारण मौत हो गयी, जबकि दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीते उदय की 13 अप्रैल को मौत हो गयी. वहीं, दक्षिण अफ्रीका से लाए गए मादा चीते दक्षा ने इस साल नौ मई को दम तोड़ दिया था. वर्ष 1947 में छत्तीसगढ. के कोरिया जिले में आखिरी चीते के शिकार के बाद सियाया/ज्वाला के चार शावक भारत की धरती पर पैदा होने वाले पहले शावक थे.

तीन चीता शावकों के अलावा दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से लाए गए 20 वयस्क चीतों में से तीन की केएनपी में मौत हो चुकी है.
इन चीतों को पिछले साल सितंबर और इस वर्ष फरवरी में क्रमश: नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से केएनपी में लाया गया था. धरती पर सबसे तेज दौड़ने की विशेषता वाले इस वन्यजीव को 1952 में देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया था. 17 सितंबर, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में नामीबिया से लाए गए पांच मादा और तीन नर चीतों को केएनपी में बाड़ों में छोड़ दिया गया. अन्य 12 चीतों को फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था और अलग-अलग बाड़ों में रखा गया.

भारत में चीतों के निवास स्थलों पर बाड़ लगानी चाहिए, अभी और बुरा हो सकता है: दक्षिण अफ्रीकी विशेषज्ञ
दक्षिण अफ्रीकी वन्यजीव विशेषज्ञ ंिवसेट वान डेर मर्व ने कहा है कि भारत को चीतों के दो से तीन निवास स्थलों पर बाड़ लगानी चाहिए क्योंकि इतिहास में बिना बाड़ वाले अभयारण्य में चीतों को फिर से बसाए जाने के प्रयास कभी सफल नहीं हुए हैं.
वान डेर मर्व ने सचेत किया कि चीतों को फिर से बसाए जाने की परियोजना के दौरान आगामी कुछ महीनों में तब और मौत होने की आशंका है, जब चीते कूनो राष्ट्रीय अभयारण्य में अपने क्षेत्र स्थापित करने की कोशिश करेंगे और तेंदुओं एवं बाघों से उनका सामना होगा.

इस परियोजना से निकटता से जुड़े वान डेर मर्व ने ‘पीटीआई-भाषा’ से साक्षात्कार के दौरान कहा कि हालांकि अभी तक चीतों की मौत की संख्या स्वीकार्य दायरे में है, लेकिन हाल में परियोजना की समीक्षा करने वाले विशेषज्ञों के दल ने यह अपेक्षा नहीं की थी कि नर चीते मादा दक्षिण अफ्रीकी चीते से संबंध बनाते समय उसकी हत्या कर देंगे और ‘‘वे इसकी पूरी जिम्मेदारी लेते हैं.’’ विलुप्त घोषित किए जाने के 70 साल बाद भारत में चीतों को फिर से बसाने के लिए ‘प्रोजेक्ट चीता’ लागू किया गया है. इसके तहत अफ्रीका के देशों से चीतों को दो जत्थों में यहां लाया गया है.

नामीबियाई चीतों में से एक साशा ने 27 मार्च को गुर्दे की बीमारी के कारण दम तोड़ दिया था जबकि दक्षिण अफ्रीका से लाए गए एक अन्य चीते उदय की 23 अप्रैल को मौत हो गयी. वहीं, दक्षिण अफ्रीका से लाई गई मादा चीता दक्षा एक नर चीते से मिलन के प्रयास के दौरान ंिहसक व्यवहार के कारण घायल हो गई थी और बाद में उसकी मौत हो गयी. इसके अलावा दो महीने के एक चीता शावक की 23 मई को मौत हो गई थी.

वान डेर मर्व ने कहा, ‘‘अभी तक के दर्ज इतिहास में बिना बाड़ वाले किसी भी अभयारण्य में चीतों को पुन: बसाए जाने की परियोजना सफल नहीं हुई है. दक्षिण अफ्रीका में 15 बार ऐसे प्रयास हुए हैं, जो हर बार असफल रहे हैं. हम इस बात की वकालत नहीं करेंगे कि भारत को अपने सभी चीता अभयारण्यों के चारों ओर बाड़ लगानी चाहिए. हम कह रहे हैं कि केवल दो या तीन में बाड़ लगाई जाए और ‘सिंक रिजर्व’ भरने के लिए ‘सोर्स रिजर्व’ बनाए जाएं.’’ ‘सोर्स रिजर्व’ ऐसे निवासस्थल होते हैं, जो किसी विशेष प्रजाति की संख्या वृद्धि और प्रजनन के लिए इष्टतम परिस्थितियां उपलब्ध कराते हैं. इन क्षेत्रों में प्रचुर संसाधन, उपयुक्त आवास और अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियां होती हैं.

दूसरी ओर, ‘सिंक रिजर्व’ ऐसे निवास स्थान होते हैं जहां सीमित संसाधन या पर्यावरणीय परिस्थितियां होती हैं और जो किसी प्रजाति के अस्तित्व या प्रजनन के लिए कम अनुकूल होती हैं. यदि ‘सोर्स रिजर्व’ की बढ़ी कुछ आबादी ‘सिंक रिजर्व’ में जाती है, तो ‘सिंक रिजर्व’ में अधिक समय तक आबादी बनी रह सकती है.

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