
नयी दिल्ली. कांग्रेस ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर बृहस्पतिवार को निर्वाचन आयोग पर तीखा हमला बोला और उस पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ”गुलामी करने” तथा प्रदेश के 20 प्रतिशत मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से हटाने की साजिश रचने का आरोप लगाया.
मुख्य विपक्षी दल ने आयोग के शीर्ष पदाधिकारियों पर निशाना साधते हुए यह तंज भी कसा कि उन्हें निर्वाचन भवन में बैठने की क्या जरूरत है, उन्हें भाजपा मुख्यालय की एक मंजिल पर बैठना चाहिए. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि विशेष पुनरीक्षण के मुद्दे पर जब बुधवार शाम ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक दलों के नेता आयोग पहुंचे तो वहां उनके साथ ”मनमाना रवैया” दिखाया गया. उन्होंने कहा कि इस संवैधानिक संस्था का ऐसा व्यवहार लोकतंत्र की बुनियादी संरचना को कमजोर करता है. रमेश ने कटाक्ष करते हुए कहा कि आखिर इस आयोग के अभी कितने ‘मास्टर स्ट्रोक’ देखने बाकी हैं.
रमेश ने दावा किया कि प्रत्येक दल से सिर्फ दो प्रतिनिधियों को ही मिलने की अनुमति दी गई जिससे कई नेता आयोग के सदस्यों से मुलाकात नहीं कर सके तथा वह स्वयं लगभग दो घंटे तक प्रतीक्षालय में बैठे रहे. निर्वाचन आयोग ने कहा है कि आयोग ने सभी दलों के दो-दो प्रतिनिधियों से मिलने का फैसला किया ताकि सभी के विचारों को सुना जा सके.
कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने संवाददाताओं से कहा, ”हम सभी के पास वोट देने का एक महत्वपूर्ण अधिकार है, जिसके ऊपर साजिशन चोट करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. निर्वाचन आयोग मोहरा है, जो ये कदम उठा रहा है.” उन्होंने कहा, ”हैरानी की बात है कि जब लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी या राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे महाराष्ट्र की मतदाता सूची देने और मतदान वाले दिन की सीसीटीवी फुटेज की मांग करते हैं तो महीनों तक आयोग का जवाब नहीं आता है, लेकिन यहां एक महीने में पूरे बिहार की नयी मतदाता सूची तैयार कर दी जाएगी.” उन्होंने आरोप लगाया कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर बहुत बड़ा खतरा मंडरा रहा है और ये खतरा सिर्फ विपक्ष के लिए नहीं, बल्कि हर एक मतदाता के लिए है.
खेड़ा ने दावा किया, ”हमने निर्वाचन आयोग से मिलने का समय मांगा. आयोग द्वारा हमें अपमानजनक तरीके से कहा गया कि जिस व्यक्ति के माध्यम से समय मांगा गया है, वो अनधिकृत हैं. हमें आयोग से मिलकर आभास हुआ कि हम गलत पते पर चले गए हैं. चुनाव आयोग को अपने भवन में बैठने की जरूरत नहीं है. उन्हें भाजपा मुख्यालय की एक मंजिल पर बैठ जाना चाहिए.” उन्होंने आरोप लगाया, ”निर्वाचन आयोग अगर बिचौलिया है, तो हम बिचौलियों से क्यों मिलें, हम सीधा भाजपा से बात करेंगे.” खेड़ा ने यह भी कहा, ”माफ कीजिएगा, लेकिन निर्वाचन आयोग किसी पार्टी का बिचौलिया नहीं हो सकता. सभी को अपने दायरे में रहकर काम करना होगा, यही लोकतंत्र की परिभाषा है.”
उनका कहना था, ”मैं पूरी विनम्रता से आयोग को चेतावनी दे रहा हूं कि यह सत्ता आने-जाने वाली चीज है. आप इनकी (भाजपा की) गुलामी क्यों कर रहे हैं? आप लोकतंत्र और संविधान की गुलामी करिए…जब हम बोलते हैं तो हमें बहुत दुख होता है.” बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राजेश कुमार ने कहा कि पहली बार इतने बड़े पैमाने पर मात्र एक महीने में विशेष गहन पुनरीक्षण का निर्णय लेने वाले लोग कौन थे? उन्होंने दावा किया कि आयोग विशुद्ध रूप से शंका के घेरे में है, जो बिहार के 20 प्रतिशत वोट को खत्म करने की कोशिश कर रहा है.
कुमार का कहना था, ”बाढ़ से पीड़ित लोगों के बक्से में कुछ नहीं होता है. हर बार बाढ़ के समय इनके घर का आंगन डूब जाता है, इन्हें अगली बार फिर से घर तैयार करना पड़ता है. ऐसे लोग जो बड़ी मुश्किलों में जीवन जी रहे हैं, वो आपके लिए प्रमाण कहां से लाएंगे?”
पर्यावरण और वन संरक्षण पर मोदी सरकार का रिकॉर्ड भरोसे के लायक नहीं : रमेश
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि मोदी सरकार का अब तक का ‘ट्रैक रिकॉर्ड’ ऐसा नहीं रहा है कि उस पर पर्यावरण, वन संरक्षण और संबंधित मुद्दों पर पूरा ध्यान देने के लिए भरोसा किया जाए. पूर्व पर्यावरण मंत्री ने कई नागरिक संगठनों और कार्यकर्ताओं द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे गए हालिया पत्र का उल्लेख किया.
रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा, “हाल ही में 150 नागरिक संगठनों और कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर वन अधिकार अधिनियम, 2006 को योजनाबद्ध तरीके से कमजोर करने में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की भूमिका पर गंभीर चिंता जताई है.” उन्होंने कहा, “पत्र में पांच अहम बिंदुओं को रेखांकित किया गया है. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा दिए गए खुद के ऐसे बयान…, जिनमें वन अधिकार अधिनियम, 2006 को देश के प्रमुख वन क्षेत्रों के क्षरण और नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है.”
उन्होंने कहा, “वन अतिक्रमण को लेकर कानूनी तौर पर अपुष्ट आंकड़ों को लगातार संसद और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के सामने पेश किया गया. जून, 2024 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा देशभर के टाइगर रिजर्व से लगभग 65,000 परिवारों को बेदखल करने का आदेश दिया गया.” उन्होंने पत्र का हवाला देते हुए दावा किया कि भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा पिछले एक दशक में वन क्षेत्र में आई गिरावट के लिए वन अधिकार अधिनियम को गलत तरीके से जिम्मेदार ठहराया गया.
रमेश ने कहा, ” 2023 में बिना पर्याप्त संसदीय चर्चा के पारित किया गया वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन और उसके तहत लागू किए गए ‘वन संरक्षण एवं संवर्धन नियम, 2023’ -का प्रतिकूल असर वनों पर पड़ा है.” उनके मुताबिक, ये सभी मुद्दे विशेष रूप से आदिवासी और वन क्षेत्रों में रहने वाले अन्य समुदायों के लिए अत्यंत अहम हैं, जिनकी आजीविका जंगलों पर निर्भर है तथा ये भारत की पारिस्थितिकीय सुरक्षा के लिए भी बेहद जरूरी हैं. रमेश ने कहा, “दुर्भाग्य से मोदी सरकार का अब तक का रिकॉर्ड यह भरोसा नहीं दिलाता कि इन महत्वपूर्ण सवालों पर कोई ध्यान दिया जाएगा और न ही उन समुदायों से संवाद किया जाएगा जिन्हें इन नीतियों के कारण सीधे नुकसान उठाना पड़ रहा है.”