अंतरिक्ष से की जा रही पृथ्वी की निगरानी, युद्ध पर भी नजर

न्यूयॉर्क/पोकरोव्स्क/कैनबरा. दुनिया के बड़े देशों के बीच जब युद्ध या टकराव होता है तो नयी-नयी तकनीकों के इस्तेमाल की बात सामने आती है. ऐसी ही एक तकनीक है अंतरिक्ष के जरिये जासूसी करना. इस तरह की जासूसी में आप युद्ध के मैदान की परिस्थितियों को कैमरे की नजर से देखकर उसी के हिसाब से अपनी रणनीति बनाते हैं या फिर उनमें बदलाव कर सकते हैं. कहा जा सकता है कि कुछ ऐसा ही यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के दौरान हुआ है.

अंतरिक्ष में लगे कैमरे युद्ध की गतिविधियों को रिकॉर्ड कर रहे हैं. रूसी सेना की गतिविधियों को हम सभी के साथ साझा कर रहे हैं और उनके युद्ध अपराधों को दर्ज किया जा रहा है. साल 2021 में एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि टोही उपग्रह रखने वाले देशों पर अन्य देशों की तुलना में हमले की कम संभावना होती है. माना जाता है कि युद्ध या फिर किसी बड़े विवाद के दौरान अघोषित रूप से हमला करने वाले हमलावर की जीत की संभावना अधिक रहती है.

उपग्रह प्रौद्योगिकी का उपयोग करके अंतरिक्ष से जासूसी होने पर किसी राष्ट्र के लिए रणनीतिक रूप से सतर्क होना बहुत कठिन हो जाता है, खासकर जब एक बड़ा, अधिक भीषण हमला करने का प्रयास किया जाता है. अपने खुद टोही उपग्रह रखने वाली सरकारों की संख्या सीमित रही है, लेकिन खासकर पिछले दो दशकों में इनकी संख्या में इजाफा हुआ है. उपग्रह के जरिये तस्वीरें लेना अब आम बात हो गई है. साल 2000 में इसकी शुरुआत हुई थी. उपग्रह से ली गईं तस्वीरों की गुणवत्ता में भी नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2021 के अंत में गुपचुप तरीके से यूक्रेन और उसके आसपास रूसी सैनिकों की तैनाती शुरू कर दी थी, जिसके बाद से इस बात को लेकर ंिचता पैदा हो गई कि अब रूस का अगला कदम क्या होगा. हालांकि इस दौरान उपग्रह से ली गईं तस्वीरों से यह पता चल गया कि पुतिन क्या करने वाले हैं और पश्चिमी देशों ने इसकी घोषणा की कि रूस, यूक्रेन पर हमला करने वाला है. इसलिए पुतिन ने आक्रमण की संभावना को छिपाने की कोशिश नहीं की. इसके बजाय, रूसी अधिकारियों ने हमले की आशंका को भुनाया. हालांकि इससे पहले तक कई पर्यवेक्षकों का कहना था कि पुतिन नाटो और पश्चिमी देशों पर दबाव बनाने के लिये ऐसा कर रहे हैं.

पश्चिमी देशों ने रूस के गुपचुप हमले की योजना को इस तकनीक के सहारे बेनकाब कर दिया. रूसी टैंक जब पश्चिम की तरफ से यूक्रेन में घुसे तो उपग्रह से ली गईं तस्वीरों ने रूस की योजना को उजागर कर दिया और तभी से रूस पर प्रतिबंधों की शुरुआत होने लगी. इसके अलावा युद्ध शुरू होने से पहले ही रूस की दुनियाभर में ंिनदा शुरू हो गई. लिहाजा यह कहा जा सकता है कि उपग्रह से की जाने वाली जासूसी के मामले में पश्चिमी देशों ने रूस को पछाड़ दिया.

रूस ने पोलैंड, बुल्गारिया को प्राकृतिक गैस आपूर्ति में की कटौती

अमेरिका के रक्षा मंत्री ने यूक्रेन के सहयोगियों से ”युद्ध की गति के समान बढ़ने” के लिए कीव को अधिक मात्रा में हथियारों की आपूर्ति करने का आग्रह किया. इसबीच रूस की सेना ने पूर्वी और दक्षिणी यूक्रेन पर गोलीबारी की और पोलैंड और बुल्गारिया की प्राकृतिक गैस की आपूर्ति रोक दी. यूक्रेन के अधिकारियों ने बताया कि दूसरे दिन हुए हमलों में यूक्रेन की सीमा के करीब दो शक्तिशाली रेडियो एंटीना धराशायी हो गए. एक रूसी मिसाइल ओडेसा बंदरगाह क्षेत्र को रोमानिया(नाटो सदस्य) से जोड़ने वाले एक रणनीतिक रेलमार्ग पुल पर गिरी.

इसबीच अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के कार्यकारी निदेशक फतिह बिरोल ने बुधवार सुबह ट्वीट किया कि उनका संगठन ”पोलैंड के साथ मजबूती से खड़ा है.” अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड आॅस्टिन ने मंगलवार को जर्मनी में अमेरिकी एयर बेस पर लगभग 40 देशों के अधिकारियों की एक बैठक बुलाई और कहा कि और मदद पहुंच रही है.

भूख का एक वर्ष: कैसे रूस-यूक्रेन युद्ध जलवायु से जुड़े भोजन की कमी को बढ़ा रहा है

रूस द्वारा फरवरी में यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद से वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतें बढ़ गई हैं. दोनों देशों का दुनिया के कुल गेहूं निर्यात में 30% हिस्सा है. इसका मतलब है कि कई कम आय वाले देश जो शुद्ध खाद्य आयातक हैं, एक साल की भूख की तरफ बढ़ रहे हैं. जलवायु परिवर्तन से जुड़े खाद्य उत्पादन में मौजूदा कमी को यह युद्ध और बढ़ा रहा है. वैश्विक स्तर पर, जलवायु परिवर्तन ने पहले ही वैश्विक औसत कृषि उत्पादन में कम से कम पांचवां हिस्सा कम कर दिया है.

खाद्य असुरक्षा अक्सर व्यापक सामाजिक अशांति का कारण बनती है, जैसा कि हमने 2011 के अरब स्प्रिंग विरोध में देखा था, जो प्रमुख खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि के बाद हुआ था. मौजूदा युद्ध से मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के देशों को अल्पावधि में सबसे ज्यादा नुकसान होने की संभावना है, क्योंकि वे यूक्रेनी गेहूं के प्रमुख आयातक हैं और वहां खाद्य सुरक्षा को लेकर कई मसले हैं. विशिष्ट वस्तुओं पर निर्भर देश और जो वैकल्पिक खाद्य स्रोतों की तरफ नहीं जा सकते हैं, वे भी जोखिम में हैं.

चूंकि कई देश भूख और बिगड़ती खाद्य सुरक्षा का सामना कर रहे हैं, यह समय जलवायु परिवर्तन पर हमारे प्रयासों को दोगुना करने का है. जलवायु परिवर्तन एक बड़ा जोखिम गुणक है, जो सभी मौजूदा वैश्विक संकटों को और बिगाड़ रहा है. युद्ध का क्या प्रभाव हो रहा है? दुनिया हर किसी का पेट भरने के लिए पर्याप्त भोजन पैदा करती है. वितरण और पहुंच के महत्वपूर्ण कारकों के कारण भूख बनी रहती है.

हम इस सूची में युद्ध और जलवायु परिवर्तन को भी जोड़ सकते हैं. वर्तमान गेहूं की कीमतों में उछाल युद्ध के दबाव और बाजार की अटकलों के संयोजन से हुआ है. दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं आयातक देश मिस्र है, जो अपनी आधी से अधिक गेहूं दूसरे मुल्कों से खरीदता है. वहीं, यह चावल का निर्यात करता है. यह एक खतरनाक संयोजन है. गेहूँ पर अत्यधिक निर्भरता के साथ, मिस्र की अधिकांश जनसंख्या गरीबी में रहती है. खाद्य उत्पादक देशों में सूखे और तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण 2007-08 में ब्रेड की कीमतों में लगभग 40% की वृद्धि के बाद नागरिक अशांति फैल गई.

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