नफरती भाषण : भाजपा नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी के लिये बृंदा करात की याचिका पर पुलिस को नोटिस

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने माकपा नेता बृंदा करात की उस याचिका पर दिल्ली पुलिस से जवाब दाखिल करने को कहा है जिसमें सीएए विरोधी प्रदर्शन को लेकर कथित तौर पर नफरती भाषण देने को लेकर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और भाजपा नेता प्रवेश वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई है.

इससे पहले निचली अदालत और फिर दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर दिया गया था जिसके खिलाफ करात ने यह याचिका दायर की है. न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने शहर की पुलिस को नोटिस जारी किया और तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा.

न्यायमूर्ति के.एम.जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने ठाकुर द्वारा एक रैली में लगाए गए नारे ‘‘देश के गद्दारों को, गोली मारो…’’ के संदर्भ में हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, ‘‘मेरा मानना है कि ‘गद्दार’ का मतलब देशद्रोही है? निश्चित रूप से यहां ‘गोली मारो’ दवा के नुस्खे के संदर्भ में नहीं था.’’ पीठ ने शहर पुलिस को नोटिस जारी करते हुए तीन हफ्ते के भीतर उससे जवाब दाखिल करने को कहा. सुनवाई के दौरान पीठ ने पाया कि प्रथम दृष्टया मजिस्ट्रेट का यह कहना कि दोनों भाजपा नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के तहत मंजूरी की आवश्यकता है, सही नहीं था.

माकपा नेता करात और के.एम.तिवारी की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा कि इन नेताओं के भाषणों पर संज्ञान लेने के बाद निर्वाचन आयोग ने एक निश्चित समय के लिये उनके प्रचार करने पर रोक लगा दी थी. ठाकुर जनवरी 2020 में दिल्ली के रिठाला इलाके में एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे, जहां उन्होंने कथित तौर पर नारा लगाया था.

अधिवक्ता अग्रवाल ने आरोप लगाया कि लोगों को गोली मारने के लिए उकसाने वाला नारा ‘गोली मारो’ वास्तविक कार्रवाई में तब्दील हो गया, जब कुछ ही दिनों के भीतर सीएए के विरोध प्रदर्शन स्थलों पर गोलियां चलाई गईं. उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने भी ठाकुर और प्रवेश वर्मा के भाषणों पर प्रतिकूल टिप्पणी की थी. अग्रवाल ने कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा जिस फैसले पर भरोसा किया गया, वह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के संदर्भ में प्राथमिकी दर्ज करने की मंजूरी की आवश्यकता से संबंधित था.

उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय दंड संहिता के तहत अपराधों के लिए मंजूरी की आवश्यकता नहीं है और नफरत फैलाने वाले भाषणों के लिए प्राथमिकी दर्ज करने के लिए मंजूरी की आवश्यकता नहीं है. मजिस्ट्रेट अदालत अपने निष्कर्ष में पूरी तरह से गलत है. हम तीन साल गंवा चुके हैं और अब तक उन भाषणों के संदर्भ में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है.’’ शीर्ष अदालत के पिछले साल के आदेश का जिक्र करते हुए अग्रवाल ने कहा कि शीर्ष अदालत ने पुलिस से नफरत फैलाने वाले भाषणों का स्वत: संज्ञान लेने और कोई शिकायत नहीं होने पर भी प्राथमिकी दर्ज करने को कहा है.

उन्होंने कहा, ‘‘यह दलील केवल मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करने का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा मामला भी है, जहां नफरत फैलाने वाले भाषणों के मामलों से निपटने के लिए पुलिस द्वारा कुछ दिशानिर्देशों का पालन किया जा सकता है.’’ न्यायमूर्ति जोसेफ ने अग्रवाल से पूछा कि इस मामले में आईपीसी की धारा 153ए (दंगे भड़काने के इरादे से जानबूझकर उकसाना) कैसे बनती है, क्योंकि सीएए के खिलाफ विरोध धर्मनिरपेक्ष था और विभिन्न समुदायों के लोगों ने इसमें भाग लिया था. अग्रवाल ने कहा कि नारा एक चुनावी रैली में लगाया गया था और शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन में शामिल होने वाले ज्यादातर एक विशेष समुदाय के सदस्य थे.

पिछले साल 13 जून को दिल्ली उच्च न्यायालय ने माकपा नेताओं बृंदा करात और के.एम. तिवारी द्वारा भाजपा के दो सांसदों के खिलाफ उनके कथित घृणास्पद भाषणों के सिलसिले में दायर याचिका को खारिज कर दिया था. उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा था कि कानून के तहत मौजूदा तथ्यों में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए सक्षम प्राधिकारी से मंजूरी लेनी जरूरी है.

याचिकाकर्ताओं ने निचली अदालत के समक्ष अपनी शिकायत में दावा किया था कि ठाकुर और वर्मा ने ‘‘लोगों को उकसाने की कोशिश की थी, जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली में दो अलग-अलग विरोध स्थलों पर गोलीबारी की तीन घटनाएं हुईं’’. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यहां रिठाला रैली में ठाकुर ने 27 जनवरी, 2020 को भीड़ को उकसाने के लिए भड़काऊ नारेबाजी की थी. याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि वर्मा ने 28 जनवरी, 2020 को शाहीन बाग में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कथित रूप से भड़काऊ टिप्पणी की थी.

निचली अदालत ने 26 अगस्त, 2021 को याचिकाकर्ताओं की प्राथमिकी दर्ज करने की याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह सुनवाई योग्य योग्य नहीं है क्योंकि सक्षम प्राधिकार, केंद्र सरकार से अपेक्षित मंजूरी नहीं मिली. शिकायत में, करात और तिवारी ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153-ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 153-बी (राष्ट्रीय एकजुटता को कमजोर करने वाले भाषण देना) और 295-ए (जानबूझकर किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना) के तहत प्राथमिकियां दर्ज किए जाने का अनुरोध किया था.

आईपीसी की धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से दिया गया भाषण), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान), 505 (गड़बड़ी फैलाने के इरादे से दिया गया बयान) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) के तहत भी कार्रवाई का अनुरोध किया गया था. इन अपराधों के लिये अधिकतम सात वर्ष कैद की सजा हो सकती है.

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