दुर्गा पूजा समितियों के बजट में कटौती के कारण कारीगरों के लिए त्योहारी मौसम निराशाजनक

नयी दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी लगभग दो साल बाद नवरात्रि और दुर्गा पूजा को उत्साह के साथ मनाने के लिए तैयार है, लेकिन पूजा समितियों द्वारा बजट में कटौती और आम जनता द्वारा कम खर्च के चलते शहर के मूर्तिकारों के लिए स्थिति निराशाजनक बन गई है।
कारीगरों के अनुसार, ‘‘2019 के मुकाबले इस साल आॅर्डर लगभग 70 प्रतिशत तक कम हो गए हैं। अधिकांश आॅर्डर छोटी और सस्ती मूर्तियों के लिए आ रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप लाभ घट गया है।’’

चितरंजन पार्क (सीआर पार्क) में मूर्ति बनाने वाली एक दुकान के मालिक गोंिवद नाथ ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘महामारी और प्रतिबंधों के कारण हमारा कारोबार प्रभावित हुआ है। हम दो साल बाद काम पर लौटे हैं, लेकिन कारोबार दोबारा पटरी पर नहीं लौट सका है। महामारी से पहले की तुलना में यह 25 प्रतिशत भी नहीं है। हमें न चाहते हुए भी अपने कुठ कर्मचारियों को काम से हटाना पड़ा।’’ उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल के लगभग 11 मूर्तिकार उनके यहां काम करते थे, लॉकडाउन के दौरान वे सभी अपने-अपने घर वापस चले गए।

नाथ ने कहा, ‘‘लोग छोटे आकार की मूर्तियां मंगवा रहे हैं। पूजा समितियों ने भी अपना बजट घटा दिया है। जो लोग पहले मूर्ति पर डेढ़ से दो लाख रुपये तक खर्च करते थे, वे अब केवल 50,000 रुपये से 80,000 रुपये तक खर्च कर रहे हैं।’’ उन्होंने बताया, ‘‘कोविड-19 महामारी के पहले हम दुर्गा पूजा के समय लगभग 70 से 80 मूर्तियां बनाते थे। इस साल हम केवल 25 मूर्तियां बना रहे हैं।’’ पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर के रहने वाले सुजीत दास (22) को महामारी के दौरान जीविकोपार्जन के लिए दर-दर भटकना पड़ा।

दास ने कहा, ‘‘पिछले दो साल मुश्किल रहे हैं। मुझे अपने घर लौटकर वहां काम की तलाश करनी पड़ी। मेरा भाई भी एक कारीगर है और हम दोनों मिलकर परिवार चलाते हैं।’’ इस बीच, सीआर पार्क पूजा समिति के सदस्य सौरव चक्रवर्ती ने बताया कि धन की कमी के कारण इस साल बजट में लगभग 25 प्रतिशत की कटौती की गई है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमने सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर भी खर्च में कटौती की है। हालांकि, किसी कार्यक्रम को रद्द नहीं किया गया है, लेकिन हम उन्हें बड़े पैमाने पर आयोजित नहीं कर पाएंगे।’’

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